सब लोगों से दोस्ती, सब लोगों से बैर
कम से कम आज का ये आर्टिकल पूरा पढ़ डालिए
खुशवंत सिंह साहब का पहला उपन्यास जो मैंने पढ़ा, वो इत्तिफाकन पढ़ा। मैं उस समय बीए में पढ़ता था, क्राइस्ट चर्च कॉलेज कानपुर में। खुशवंत सिंह के कॉलम के हिन्दी अनुवाद, ना काहू से दोस्ती, ना काहू से बैर का मैं नियमित पाठक था और वो अंग्रेजी के बड़े पत्रकार और लेखक हैं बस इतना भर मेरी जानकारी थी।
कानपुर से सुल्तानपुर अपने घर जा रहा था, बस अड्डे पर आदतन बुक स्टॉल पर किताबें पलटने लगा। निगाह खुशवंत सिंह के उपन्यास दिल्ली पर पड़ी। कॉलम का पाठक होने के नाते सोचा लाओ इस किताब को पढ़ते हैं। किताब पढ़ने के बाद लगा दिल्ली जैसे विस्तृत फलक को जितनी संपूर्णता और संक्षेप में खुशवंत सिंह ने निपटाया वो शायद वही कर सकते थे।
दिल्ली को उन्होंने भागमती नामक हिजड़े के चरित्र से भी जोड़ा। वजह तो मैं आज तक नहीं समझ पाया। लेकिन, मुझे ऐसा लगता है कि देखा जाए तो अपने पूरे इतिहास में दिल्ली एक अनुत्पादक जगह रही है।
इसने विभिन्न कालखंडों में देश की सर्वोत्तम निधियों को भोगा और कालक्रम में उन्हें भुला दिया। लेकिन, बदले में कुछ नहीं दिया। शायद इसीलिए ऐसी बंजर और कृतघ्न दिल्ली की तुलना उन्होंने हिंजड़े से की हो।
कालांतर में खुशवंत सिंह को और पढ़ा, उनकी आत्मकथा भी पढ़ी और उनके कॉलम का तो मैं उनकी मृत्यु पर्यन्त पाठक रहा। उनके व्यक्तित्व की ईमानदारी, खिलंदड़े पन और ज्ञान के विशाल भंडार का मैं शुरू से कायल रहा और उनके कॉलम से खास तौर से।
हल्की फुल्की भाषा में मजेदार तथ्य और ज्ञान देने वाला ऐसा कॉलम हिन्दी में कोई नहीं लिख पाया। ये कोई हीन बात नहीं है कि हिन्दी में इसका शोक मनाया जाए। दरअसल खुशवंत सिंह का जो बैकग्राउंड था और जैसा लम्बा और विविधता पूर्ण जीवन उन्होंने जीया, उस वजह से वो कॉलम शायद उनके लिए लिखना सम्भव हुआ।
हिन्दी में ऐसा जीवन किसी को मिला ही नहीं तो लिखता कैसे? बहरहाल ये सब लिखने के पीछे कुल वजह इतनी है कि खुशवंत सिंह से प्रभावित मैंने भी इसी तरह का हल्का फुल्का कॉलम लिखने की सोची जो एक तरह से उनके प्रति कृतज्ञता ज्ञापन भी होगा।
इसी कॉलम को लेकर अपने मित्र अतुल श्रीवास्तव से चर्चा कर रहा था। मैंने कहा सोच रहा हूं इस कॉलम का नाम, बैठे से बेगार भली, रखा जाए। तब अतुल ने कहा भाई साहब जब इस कॉलम की प्रेरणा खुशवंत सिंह है तो कॉलम का नाम भी उनके कॉलम से मिलता-जुलता और थोड़ा खिलंदड़ा सा ही रखिए।
इस बाबत जब मेरा प्रयास असफल रहा तो अतुल ने ही नाम सुझाया कहा लम्बे समय तक हम लोग पत्रकार रहे हैं तब हमारी सबसे दुश्मनी और सबसे दोस्ती होती थी। इसलिए कॉलम का यही नाम रखिए, सब लोगों से दोस्ती, सब लोगों से बैर, यह नाम खुशवंत सिंह के कॉलम से मिलता भी है और गुण दोष के आधार पर जो चीज जैसी होगी वैसी ही आप लिखिए भी।
शुरुआत तो कर दी है, लेकिन डर केवल दो है खुशवंत सिंह के जीवन और ज्ञान की तुलना में मै पासंग भी नहीं हूं या ये कहना बेहतर होगा, कहां राजा भोज कहां गंगू तेली। दूसरा मेरा आलस्य लेकिन बावजूद इसके तेली को कोल्हू चलाने का अधिकार तो है ही, यह और बात है कि तेल कैसा निकलता है।
लेकिन, अब बुढ़ापे में ठान लिया है तो तेल तो निकलेगा ही, धार कैसी है यह देखना आप का काम है। शुक्रिया, बीच बीच में दुलारते और धमकाते रहिएगा, तो आप को और मुझे दोनों को मजा आयेगा।